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[२१] , घर आकर फत्तू ने पूछा-भाई ज्ञानचंद, तुम पाठ कैसे याद कर लेते हो ? मुझसे तो नहीं होता।
ज्ञानचन्द्र ने कहा-देखो, भाई फत्तू, मैं खेलने के समय जी लगाकर खेलता हूँ और पढ़ने के समय जी लगाकर पढ़ता हूँ। पढ़ने के समय कभी नहीं खेलता।
फत्त ने भी ऐसा ही किया। दूसरे दिन फत्तू ने पाठ सुना दिया। गुरुजी खुश हुए।
७-बहुरूपिया की बात _तुम बहुरूपिया को जानते होगे। वह तरह-तरह के खाँग बनाता है। भेष बदल-बदल कर कभी यावा बनता है, कभी सिपाही बनता है, कभी बुढ़िया बनता है । नकल करके सबको खुश करना उसका काम है।
एक बार किसी गाँव में बहुरूपिया आया। उसने कई खाँग बनाये। लोग खुश हुए। दूसरे दिन उसका पेट दुखने लगा। पेट ऐसा दुखा कि वह दर्द के मारे लोट-पोट होने लगा।कभी उठता, कभी बैठता, कभी पेट पकड़ कर पड़ रहता। उसकी चिल्लाहट सुनकर लोग उसके पास आये । उसने