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________________ [ २२ ] कहा - मेरा पेट दुखता है । पर लोगों ने समझा कि यह किसी पेट दुखनेवाले की नकल करता है। किसी ने उसकी बात सच्ची न मानी, न उसे दवा दी । अन्त में बहुरूपिया ने विचार किया— देखो, मैं झूठ बोलता हूँ, इसी से लोग मेरी बात सच्ची नहीं मानते । अब मैं झूठ न बोलूँगा । अनीति से धन नहीं जोडूंगा। नीति का पालन करूँगा । अनीति करने से बहुत दुःख उठाना पड़ता है । फिर बहुरूपिया नीति का पालन करने लगा । ८- नीति जो जीवन को सुधारे उसे नीति कहते हैं । वह कई तरह की है । जैसे १- सबका भला करना । । २--सच बोलना । ३ – ईमानदारी रखना | , ४-- चालचलन अच्छा रखना । ५-- संतोष रखना | .६ --क्षमा रखना ।
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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