SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६६ ) (१) सम्यक्त्व-यथार्थ तत्त्व श्रद्धा का होना । (२) व्रतपञ्चक्वाण-सब पापों का त्याग होना। (३) अपमाद-मद, विषय, कषाय, निद्रा और विकथा इन पांच प्रकार के प्रमादों का त्याग करना । (४) अकषाय-कषाय रहित होना। (५) योगसंवर-मन, वचन और काया को संयम में रखना। श्राते हैं दल बांधकर, ये दुख दायी कर्म । इन द्वारों को रोक दो, लेकर संवर धर्म ॥ पाठ ३१ –निर्जरातत्त्व (बारह तप)। कुछ अंश से पाप कर्मों का नाश करे वह निर्जरा । (१) अनशन-उपवास करने को कहते हैं । (२) उपोदरी-भूख से कम खाने को कहते हैं। (३) वृत्तिसंक्षेप-खाने की इच्छा को रोकने को कहते हैं। (४) रसपरित्याग-स्वादिष्ट भोजन छोड़ने को कहते हैं। (५) कायक्लेश-शारीरिक कष्टों के सहन करने को कहते हैं। (६) प्रति संलीनता-इन्द्रियों के वश करने को कहते हैं। (७) प्रायश्चित्-पाप (अपराधों) का दण्ड लेने को कहते हैं। (८) विनय-नम्रता गुण धारण करने को कहते हैं।
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy