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( ६४ ) ये सात तरह के जीव पर्याप्त.और अपर्याप्त होते हैं, इस लिये सात पर्याप्त और सात अपर्याप्त मिलकर चउदह हुए। .
नाना विध संसार में, सहते प्राणी कष्ट । चनो सिद्ध सब दुःख मिटे, सकल कर्म कर नष्ट ॥
पाठ ३४- अजीव तत्व । अजीव के मुख्य दो भेद हैं-(१) अरूपी अजीव, (२) रूपी अजीव । विस्तार से अजीव के उदर भेद होते हैं तथा ५६० प्रभेद होते हैं।
चउदह भेद(१) धर्मास्ति काय, (२) अधर्मास्ति काय, (३) आकाशास्ति काय, इन तीनों के स्कंध (सम्पूर्ण वस्तु), देश (छोटा हिस्सा) और प्रदेश (सव से छोटा हिस्सा) ये तीन मेद करने से नव हुए । (१०) काल द्रव्य । ये दश तो अरूपी अजीव के मेद हैं। रूपी अजीव 'पुद्गल' के चार मेद हैं-(१) स्कन्ध, (२) देश, (३) प्रदेश और (४) परमाणु पुद्गल (जिसके दो भाग नहीं होसकते ऐसा अणु) ये चार रूपी अजीव के हैं। ये कुल मिलकर चउदाहुए।