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( ६५ ) चेतन रहित अजीव है, हम हैं चेतन प्राण । इस अजीव के जाल से, करिये अपना त्राणरे ॥
पाठ ३५-पुण्य तत्व। . . अच्छे काम जो सुख देने वाले हों उन्हें पुण्य कहते हैं, उसके नव भेद हैं
(१) अन्न दान देने को अन्न पुण्य कहते हैं।
(२) जल दान देने को पान पुण्य कहते हैं। ' (३) मकान दान देने को लयन पुण्य कहते हैं । ' (४) बिछौनादि दान देने को शयन पुण्य कहते हैं। (५) वस्त्र दान देने को वस्थ पुण्य कहते हैं। .
(६) किसी की भलाई के लिये मन से विचार करने को मन पुण्य कहते हैं।
(७) मीठे हितकर वचन बोलने को वचन पुण्य कहते हैं । (८) सेवा भक्ति करना उसे काय पुण्य कहते हैं। (६) नमस्कार करना उसे नमस्कार पुण्य कहते हैं । विनय भक्ति मीठे वचन, तन मन धन का दान । पुण्य यही ससार मे, सुख का कारण जान ॥
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. चेतन प्राण वाले, निश्चय से ज्ञान दर्शन ही जीव के प्राण हैं। २ रक्षा।
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