SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६३ ) नव तत्त्व का सामान्य स्वरूप पाठ ३३–जीव तत्त्व। जीव के मुख्य दो भेद हैं-(१) संसारी, (२) सिद्ध । जो शरीरधारी हों, तथा राग, द्वेष, मोह से जन्म, मरणादि दुःख भोगें उन्हें संसारी कहते हैं । जिन्हें गग, द्वेष, मोह का नाश करके जन्म-मरणादि दुःखों का नाश किया है, तथा जो शरीर रहित हो गये हैं, उन्हें सिद्ध कहते हैं। संसारी जीव के मुख्य दो भेद हैं-(१) त्रस जीव जो इच्छापूर्वक हलन चलन करसकता है । (२) स्थावर जीव जो इच्छानुसार हलन चलन क्रिया नहीं कर सकता है। संसारी जीवों के विस्तार से चौदह भेद तथा ५६३ प्रमेद होते हैं। घउदह भेद(१) सूक्ष्म एकेन्द्रिय, (२) वादुर एकेन्द्रिय, (३) बेन्द्रिय, (४) तेन्द्रिय, (५) चतुरिन्द्रिय, (६) असंशि पंचेन्द्रिय, (७) संझि पंचेन्द्रिय ।
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy