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( ५६ ) रानियों ने भी ऐसा ही किया । इससे नमिराज को शान्ति हुई । अब आपने विचार किया कि आवाज बंध होने से मुझे नींद भा गई । ज्यादा कङ्कण पहिनने से आवाज होती है, एक से आवाज नहीं होती। वैसे ही ज्यादा मनुः प्यों के समूह में रहने से भी दुःख होता है और एकान्त में आत्म-भाव रहता है । यह परम सुख है । अन्त में उन्होंने निश्चय किया कि यदि मैं रोग मुक्त हो जाऊँ तो दीक्षा ले लूं ऐसा विचार करने में उसी रात्रि में आपकी बिमारी मिट गई । कारण यह है कि शुभ भावना से रोग शोक भय आदि सकल दुःख नष्ट हो जाते हैं। रोग नष्ट होने पर आप धर्म चिन्तवन करने लगे । इससे आपको जाति स्मरण ज्ञान हुआ और आपने तुरन्त ही दीक्षा ले ली। आपके संयम की परीक्षा करन को स्वयं इन्द्र आए। इन्द्र ने आपसे अनुकूल प्रतिकूल बहुत से प्रश्न पूछे और
आपने उनका यथार्थ उत्तर दिया, फिर भी आप अपने संयम में दृढ़ रहे । अन्त में नमस्कार व स्तुति कर इन्द्र स्वस्थान चले गए। ___प्यारे वीर पुत्रो ! आज के पाठ में सादगी की शिक्षा ठोस ठोस कर भरी हुई है। राज्य में दास दासियाँ की कमी नहीं थी तो भी पटानया चन्दन अपने हाथ से