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________________ ( ५८ ) किए जाते हैं । निर्लामी अर्थात् संतोषी ही सव पापों को छोड़ सकता है । लोभी मनुष्य खुद पाप में गिरता है और औरों को भी गिराता है। संतोषी मनुष्य आत्म कल्याण कर सकता है और उसकी वाणी में इतना असर होना है कि विश्व मात्र उसकी बात मानने लग जाता है । संतोषी मनुष्य विश्व में सर्व श्रेष्ठ और बादशाहों का बादशाह है । लोभी विश्व में तुच्छ, प्रामर है । वह गुलामों की तरह अपना जीवन व्यतीत करता है । पाठ ३२—सादगी में शान्ति (श्री नमिराज)। मिथिला नगरी में नमिराज राज्य करते थे । इनसे सब शत्रु नम चुके थे इसी से इनका नाम नमिराजजी पड़ा। एक समय श्रापको दाह ज्वर हो गया । उस रोग से आपको अत्यन्त पीड़ा होती थी । वैद्यों ने बहुत सा प्रयत्न किया परन्तु आपको आराम न हुआ । अन्त में आप के शरीर पर चंदन का लेपन किया जाने लगा। चंदन घिसने का कार्य महाराणियाँ खुद करती थी । घिसते समय उनके कङ्कणों की जो आवाज होती उससे भी नमिराज को बहुत कष्ट होता था । यह जानकर पट्टरानी ने अपने हाथों से कङ्कण उतार दिए, सिर्फ एक २ चूड़ी रक्खी । दूसरी
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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