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( ६० ) घिसती थी । हाथ से चन्दन घिसने में रानियों की सादगी
और भक्ति झलक रही है । ज्यादा आभूषण पहिनने से कुछ लाभ तो होता ही नहीं है, उलटा हार्थों में मैल जम जाता है और रोग होता है रोग होने के समय महाराज नमिराज ने और अनाथी महाराज ने दवाई लेना निरर्थक समस कर धर्म पालन करने का संकल्प किया जिपसे उनको आराम हो गया । अाजकल तो अमेरिका के डाक्टरों का मत है कि जितने लोग दुरु हाल में नहीं मरते हैं उनसे ज्यादा दवाइयों से मरते हैं । सब से बड़ा डाक्टर वही है जो रोगी को, दवाई न देकर उपवास करावे । श्राजकल लोग संकट आने पर भैरव भवानी आदि मिथ्या देवों की सानता करते हैं । पहिले के लोग ऐसा नहीं करते थे। वे धर्म की आराधना करने की प्रतिज्ञा लेते थे और उनका रोग नष्ट हो जाता था। -----
पाठ ३३-पूणिया श्रावकजी। श्री महावीर प्रभु के समय में पूणिया नाम के एक श्रावक हो गए हैं । रूई की पूणियां बना कर कातने वालों को बहुत सस्ती वेचने से उनको सब लोग पूणिया श्रावक कहने लगे । उस जमाने में रूई कातकर खादी बनाई जानी थी और सव संसार खादी ही पहिनता था।