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________________ ( ५५ ) एक समय प्रातः काल में स्नान करके एवं वस्त्राभूपण धारण करके महाराजा भरत अरिसा भवन में गए । वहां एक उँगली में से अंगूठी गिर गई । बिना अंगूठी के उंगली मदी दिखने लगी । तब आपने विचार किया कि यह सब शोमा आभूषण की दिख रही है; ऐसे मिथ्या मोह में मुझे क्यों मुग्ध होना चाहिये । ऐसा सोच कर आपने दूसरी उंगलियों से अंगूठियां निकालना प्रारम्भ किया इससे हाथ विशेष भद्दा दीखने लगा । फिर आपने सब वस्त्र और आभूपण उतार दिए । इससे आपको ज्ञान हुआ कि सब शोमा वस्त्राभूषण की है । शरीर तो असार है । ऐसा विचार करते २ आप शरीर की अनित्यता का चिन्तवन फरने लगे और शुक्ल ध्यान की श्रेणी तक चढ़ गए जिमसे अापके घन घाती कर्म क्षय हो गए तथा आप केवलज्ञानी मुनि बन गए । आपके साथ दश हजार राजाओं ने मी दीक्षा ली और सबने श्रात्म कल्याण किया । प्यारे विद्यार्थीगण ! शरीर अनित्य है । इसमें हाड, माम भौर लोहू भरे हैं। इससे धर्म आराधन करना चाहिये । बहुत मे अज्ञानी मनुष्य शरीर को सजाने ही में भपना दिन पूर्ण करते हैं. वृद्धावस्था में दॉन गिर जाने पर वे पत्थर के टुकड़ों की बत्तीमी लगाते हैं और
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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