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प्रति दिन जीर्ण हो रहा है । इस शरीर से धर्म की आराधना करनी चाहिये ।"
ऐसा शुभ विचार करने से उन्हें जाति-स्मरण ज्ञान हुआ । उन्होंने दीक्षा ले ली और संयम पाल कर मोद में पधारे ।
प्यारे वीर पुत्रो ! पूर्व में राजाओं को भी गौएँ पालने का शौक था और वे गौओं की आबादी में राज्य की वादी मानते थे । आपको गौ की रक्षा करनी चाहिये । बाजारू दूध, दही और घी खाने से आज कल की प्रजा गौ-रक्षा में पिछड़ गई है । इससे भारत दिन प्रति दिन निर्धन बन रहा है | जब भारत में पुनः गौ-रक्षा होगी तभी मारत समृद्धिशाली और आबाद हो सकेगा ।
पाठ ३० - सादगी से मोक्ष (भरत चक्रवर्ती) ।
श्री ऋषभदेव स्वामी के बड़े पुत्र का नाम भरत था । आपकी राजधानी अयोध्या में थी । आप छः खण्ड के मालिक थे । आपके पास चौदह रत्न, नव निधान चौरासी लाख हाथी, चौरासी लाख घोड़े और छियानवे करोड़ ल सैनिक थे । आपकी आज्ञा में बत्तीस हजार राजा थे और छियानवें करोड़ गाँवों के मालिक थे ।