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{ ४३ ) इङ्गलैंड और भारतवर्ष के बड़े २ वैद्य और डाक्टरों ने स्पष्ट रूप से अपना मत दिया है कि यह खांड धर्म शास्त्र की रीति से तो खाना मना है ही, पर इससे प्लेग, महामारी आदि रोग होते हैं और बालकों तथा ऊम्र वाले मनुष्यों की मृत्यु संख्या बढ़ी है। इसलिये जो धर्म को न मानता हो उसे आरोग्य की दृष्टि से भी इसका खाना छोड़ देना चाहिये । ____ हिन्दी बंगवासी कलकत्ता ता० ३०-३.१६०३ के अफ में लिखता है कि सिर्फ हिन्दुस्तान से २८ लाख मन जानवरों की हहिएँ खांड वगैरह खाने के पदार्थ बनाने के लिए विलायत जाती हैं । स्वदेशी खांड कदाचित परदेशी मद्भगा मिले तो भी उसमें पवित्रता और तन्दुरुस्ती है त, मिठास ज्यादा होता है, उसे ही खरीदनी चाहिये । निकी शक्ति स्वदेशी खांड काम में लाने की नहीं है, उसे गुड़ काग) में लाना चाहिये. इससे गौ-हत्या अटकेगी और दुधार शुओं की वृद्धि होकर दूध दही घी वगैरह सस्ते होंगे ।
देशी और विलायती शकर की परिक्षा ।
कांच के गिलास में गरम पानी भर कर उसमें धोड़ी मोरस शक्कर डालिए, गलत समय सूक्षदर्शक यंत्र से देखेंगे
लोही के रजकण दिखाई देंगे।