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(८५) रसायन खाने वाले को पथ्य पालने की जरूरत रहती है उसी प्रकार ज्ञानी को चारित्र की जरूरत है पथ्य रहित रसायण लाभ दायक नहीं है उसी प्रकार चारित्र रहित ज्ञान विशेष लाभ दायक नहीं है. (८६) शीतलता दूर करने के लिये अग्नि में गिरने वाला दुःखी होता है उसी प्रकार मिथ्यात्वी विषयेच्छा से भोग भोगने वाला इस लोक व परलोक में दुखी होता है | ( अनंत काल तक )
(८७) दीपक में प्रकाश रहता है. उसी प्रकार समदृष्टि ज्ञान दीपक से सदा प्रकाशित है ।
(८८) चोर को जिस प्रकार सिपाही मारते हैं उसी प्रकार वेदनीय कर्म रूप सिपाही भी विषयी कषायी को अनंत काल से मार मारते हैं ।
(८९) सिपाही मार २ कर थक जाते हैं तब चोर को शांति मिलती है उसी प्रकार वेदनीय कर्म सजा देकर के थक जाते हैं तब आत्मा को शांति मिलती है. (९०) आयुकर्म जेलर के समान है जो आत्मा को विविध जीवयोनि में अपने कर्तव्यानुसार कैद रखता है । (९१) नाम कर्म बहुरूपीया जैसा है कि जो आत्मा के मूल स्वरूप को पलटा के विचित्र रूप अनंत काल से धारण करा रहा है ।
(९२) जो हेय, ज्ञेय, उपादेय का मनसे विचार करते हैं वही मनुष्य है ।