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( १२२) उसी प्रकार जो विपयी कपायी नहीं है ये
निरोगी हैं। (४४) संसार रूपी नाटक शाला में जीव स्त्री व पुरुष का
भेप धारण कर नाच रहा है । (४५) जीवन का बहुतसा भाग एकेन्द्रि के रूप में
विताया. (४६) सम्यक ज्ञान के बिना त्रस, स्थावर, संज्ञी, असंज्ञी,
नारकी देव मनुष्य व पशु सब समान हैं, (४७) चारित्र मोहोदय के कारण स्थावर जीवों को भी
प्रभुने तीन कषायी और तीन अशुभ लेशी वाले फरमाये हैं तो मनुष्य रात दिन तीन कपाय व अशुभ लेश्या में जीवन पूर्ण करता है उसकी क्या
गति होगी ? भव्य विचारीएगा! (४८) स्थावर जीवों में अल्प शक्ति होने पर भी चारित्र
मोह के कारण अनंत कषाय हैं तो जो रात दिन आरंभी, परिग्रही, विषयी कषायी जीवन बिता रहे
हैं उन मनुष्यों की कौनसी गति होगी ? (४९) त्रस काय की स्थिति पत्थर के आकाश में अधर
रहने जितनी है और स्थावर काय की स्थिति पत्थर के जमीन पर रहने जितनी है। पाठक ! इस पर खुब ही मनन करें ।