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________________ ( १२० ) (२५) मुर्दे के हाथ में हथियार व्यर्थ है उसी प्रकार ज्ञानी ज्ञान का उपयोग न ले तो वह ज्ञान निरर्थक है । (२६) गधे को चंदन भार रूप है वैसे ही चारित्रहीन की ज्ञान की बातें भार के समान है । (२७) विपय-कपाय ज्ञान और दर्शन की दोनों चक्षु फोड कर अंधा बनाती है । (२८) विषयी - कपायी का जीवन बगुले जैसा है । (२९) पूर्व जन्म की अज्ञानता से बांधे हुए पापोंके लिए पश्चात्ताप करो और वर्तमान जीवन को सुधारो । (३०) शारीरिक मकान में प्रमाद सर्प घुस गया है वह ज्ञान को नष्ट कर अज्ञान विष फैलाता है । (३१) रात दिन रूपी आग से यह शारीरिक मकान जल रहा है तो फिर ऐसे मकान में कौन वास करना पसंद करते हैं और कौन ऐसे शरीर से मोह रखते हैं ? (३२) काल शत्रु तलवार लेकर खडा है फिर भी गाफिल होकर नींद ले रहा है । ( अज्ञानी ) 1 " (३३) साता की इच्छा से अनंत असाता के कर्म बंधते हैं (३४ ) यह आत्मा प्रतिदिन क्रोडों योजन की सफर करता है तो भी उसे अपना भान नहीं है आयु पूर्ण होता है और परलोक समीप आता है । नित्य परलोक की लंबी सफर हो रही है । (३५) परिग्रह की वृद्धि होनेसे आरंभ, विषय, कषाय, व पाप की वृद्धि होती है । 1
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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