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________________ (११९ ) (१७) हवा व प्रकाश वाली व खुव चौडी गटर मे लाखों रुपये देने पर भी कोई रहना पसंद नहीं करता तो फिर गटर से भी अनंत दुगंध मय वह स्थान जहां न हवा है और न प्रकाश, वहां सवा नो मास तक रहना पडता है उस समय की वेदना का पाठक ही अनुमान कर सकते हैं। (१८) माता का खाया हआ आहार पित्त व कफ में मिलने से उलटी जैसा बनता है और वही आहार गर्भस्थ जीव करता है। (१९) विषय कषाय पिशाच है वह मनुष्य को भी पिशाच बनाता है। (२०) हाथ में शस्त्र व सिर पर रत्न का मुकुट धारण करके भिक्षा मांगने वाला दया पात्र है उसी प्रकार साधु व श्रावक का भेष धारण कर कपाय करने वाला दया पात्र है। (२१) विषयी-कपायी बहुरुपिया जैसा है उसने सिर्फ साधु व श्रावक का स्वॉग लिया है। (२२) अमृत विप के योग से विप वनता है उसी प्रकार विषय, कपाय से ज्ञानी भी अज्ञानी बनते हैं। (२३) आत्मा के लिये विषय-कपाय कुपथ्य भोजन है। (२४) मुर्दे को पक्षी नोचते हैं उसी प्रकार अज्ञानी-मुर्देको विषय कपाय रूप पक्षी नोच २ कर खा जाते हैं।
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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