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कर्म बंधते हैं क्षमा रखने से नये कर्म नहीं बंधते । और पुराने कर्म क्षय होते हैं तो मैं ऐसा लाभ क्यों छोडूं ? इंद्रियां बंदर के समान हैं उन्हें ज्ञान पिंजरे में कैद कर आत्म साधना कीजियेगा प्राण देकर भी क्षमा की रक्षा करो।
अध्यात्म-शतक (१) पुद्गल की संगति से जीव के भव भ्रमण वढते हैं। (२) संसार रूप नृत्यशाला में विषयी कपायी नृत्य
करते हैं। ( अनंत काल से) ( ३ ) ज्ञान ज्योति की विलीनता ही भाव निद्रा है (४) चैतन्य सत्ता की तन्लीनता ही मोक्ष मार्ग है। (५) आत्मध्यान बिना सब ध्यान भयंकर है । (६) स्वस्वरूप में लीन रहने वाला ही स्वाधीन है शेप
सब पराधीन हैं और अनंत संसारी है। (७) आत्म रमणता यही जीवन मुक्त दशा है। (८) ज्ञान दर्शन का सार चारित्र और चारित्र का सार
निर्वाण और यही आत्मस्वभाव है। (९) छोटी उम्र वाला व्यवहार में बाल है पर अज्ञानी
युवक व वृद्ध निश्चय में महा वाल है । (१०) रोग के समय कड़वी दवाई पीने में जिस प्रकार
उदासीनता रहती है उसी प्रकार सान पान में ज्ञानी सदैव उदासीन रहते है।