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( ११६ ) (८७) कपाय रूप कीच में अज्ञानी फंसते हैं। . (८८) कषाय दुःखदायी शस्त्र समान है। (८९) कपाय के अभाव से संसार का अभाव. (९०) कषाय को न रोकने से वह अग्निवत् बढती जाती है। (९१) क्रोध रत्न त्रय का नाश करता है । (९२) मेरी भूल बताने वाला मेरा मित्र है उस पर क्रोध
क्यों करूं ? ज्ञानी ऐसा विचारते हैं। (९३) क्रोध करने वाला दूसरों को क्रोध करना सिखाता है। (९४) परके हित के लिये परोपकारी अपना सर्वस्व दे देते
हैं मुझे क्रोधी को कुछ भी नहीं देना है और क्षमा
धन मुझे मेरे पास ही रखना है। (९५) अज्ञानी क्रोध करके विष पीता है पर तू क्यों
विष पीता है ? और नर्कगामी बनता है। (९६) मेरे अशुभ कर्म काटने का यह साधन है। (९७) क्रोध का विजय नहीं किया तो ज्ञान किस काम का? (९८) चन्दन काटने वाले को और कुल्हाडी को सुगंध
देता है तो मुझे क्या (क्रोधी को) देना चाहिये ? (९९) अपना अहित करके भी क्रोधी मुझे सुधारने की
कोशिश करते हैं उनका उपकार मैं कैसे भूल
सकता हूं, उपकार न मानना नीचता है। (१००) मुझे अशाता का उदय न होता तो वह मुझ पर
क्रोध क्यों करता ? उसका कुछ दोप नहीं है दोष केवल मेरी ही आत्मा का है । क्रोध करने से नये