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( ११४ ) (५५) समभाव चन्द्रमा से शीतल है पर विषय कपाय के
भाव अग्नि से भी भयंकर है। (५६) विषय-कषाय की बात चीत श्रोता व वक्ता दोनों
को नरक में ले जाती है तो उसका आचरण करने
वाले की क्या दशा होगी? __ (५७) संतोषी विश्व को पावन करता है ।
(५८) लाभा विश्व में कलंक रूप है । (५९) संतोषी संसार समुद्र तैर जाता है पर लोभी संसार
___ समुद्र में डूब जाता है। (६०) समभावी समुद्र जैसा गंभीर है उसमें सब गुण
रूपी नदियां आकर मिलती हैं।। (६१) कषाय दावानल है उसमें सब गुण रूपी चंदनादि
जलकर भस्म हो जाते हैं। (६२) समभावी को देवता नमस्कार करते हैं। कषायी से
नारकीके नेरिये भी घृणा करते हैं। (६३) समभावी देवताओं का पूज्य है। (६४) सब पापों का मूल एक कषाय है। (६५) कषाय नरक निगोद की सीढ़ी है। (६६) कषाय क्रोड पूर्व की तपस्या को नष्ट करती है। (६७) कषायी खुद जलता है और औरों को जलाता है। (६८) विषय-कपाय हलाहल विष से भी भयंकर है। (६९) विषय-कषाय के विचार मात्र से जीव नरक में जाते
हैं तो विषय-कषाय बढाने वालों का क्या होगा?