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( ११३ ) (४१) अज्ञानी ज्ञान गज की सवारी त्यागकर विषय
कषाय रूप गधे की सवारी करके अपने आपको
दुर्गति में ले जाता है। (४२) तत्वों का ज्ञान यही सम्यक ज्ञान है। (४३) तत्व की रुचि प्रतीति यह स (४४) कषाय से निवृति यह सम्यक चारित्र. (४५) आत्म शुद्धि यही सम्यक्त्व. (४६) ज्ञानी शत्रु, मित्र स्व-पर का भेद भूलकर सबको
भाई मित्र सा समझते हैं। (४७) अज्ञानी जीव कुन रूपी पाषाण की नाव में बैठ
कर संसार समुद्र तैरना चाहते हैं। ___ (४८) मुख रूपी बिल में अप्रिय वचन बोलनेवाली
जिव्हा रूपी नागिन रहती है वह अपना विप
विश्व में फैलाती है। (४९) लाखो रुपये इनाम मिलने पर भी किसी की निंदा न
सुनो और न करो। (५०) सत्य धर्म का नाश होता हो तो उसकी रक्षा के
लिये बोलो अन्यथा मौन रहो।। (५१) वोलने में सौ टका हानि है और न बोलने में सौ । 'टका लाभ है। (५२) निन्दक के वचन नागिन से भी भयंकर है। (५३) निरर्थक वचन नारकीय वचन है। (५४) एक एक शब्द को मोती से भी महंगा समझो।