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ज्ञान दशा जागृत होती है और अनंत काल का कर्म बोझ दूर होता है और आत्मा शुद्ध होती है । (३०) मोह रूप अग्नि से विश्व जल रहा है । (३१) विषय वासना से विश्व अंधा बना है । (३२) सुखी होने के लिये रेशम के कीड़े अपने शरीर पर रेशम पलटते हैं किन्तु उससे वे दुःखी होते हैं वैसे ही पुत्र धनादि के बंधन से मनुष्य दुःखी होता है ।
(३३) वनमें दावानल लगा अंधा सुखी होने के लिये दौड़ा किंतु दावानल में गिरकर मर गया इसीप्रकार अज्ञानी संसार दावानल में सुखी होने के लिये दौडते हैं किंतु दुःख दावानल में गिरकर भस्म जाते हैं ।
(३४) जानवर हिताहित का विचार नहीं कर सकता । उसी प्रकार अज्ञानी भी पशुसा जीवन व्यतीत करके आत्मघात करता है ।
(३५) विचारों सा आचार न रखना भी आत्म ठगाई है। (३६) मोह-दृष्टि विष सर्प से भी विशेष भयंकर है । (३७) मिथ्यात्व रूप पिशाच आत्मा का नाश करता है । (३८) मोह निद्रा द्रव्य निद्रा से अनंत भयंकर है । ( ३९ ) विषय कषाय प्रवृत्ति पाखंड वृत्ति है । (४०) ज्ञान की बातें करने वाले बहुत हैं किंतु विचार सा आचार रखने वाले विरले हैं ।