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(११० ) (१०) जैसे पिता पुत्र के मुर्दे को उठाकर स्मशान में
ले जाता है उसी प्रकार आत्मा शारीरिक मुर्दे को
उठाकर संसार में परिभ्रमण कर रहा है। (११) जन्म हुआ तव शरीर साथ न था और मरने पर
भी शरीर साथ नहीं चल सकेगा शरीर तो यहीं पड़ा रहने वाला है जिसे जलाकर निकट के स्नेही
प्रसन्न होंगे। यह अनादि का रिवाज है। (१२) स्त्री, पुत्रादि का सम्मन्ध तो थोड़े ही दिनों से
हुवा है और वह भी छूट जायगा। (१३) इस शरीर में प्रशंसा के योग्य कौन सा पदार्थ है ?' (१४) स्त्री और पुरुष का शरीर गटर खाना है पुरुष के
गटर खाने में नौ नाले हैं और स्त्री के गटरखाने
में ग्यारह नाले हैं। (१५) शरीर रूपी गटर खाने में कृमि-कीडे-अलसिय
कलवला रहे हैं। (१६) असंख्य समुद्र के जलसे स्नान करने पर भी यह
शरीर शुद्ध नहीं होगा किंतु असंख्य समुद्र के जल
को यह शरीर गंदा बनायगा। (१७) शरीर पर चमड़ी न होती तो कौशे, मक्खी,
मच्छर इस शरीर को खा जाते । (१८) अनंत दुःख व भव भ्रमण का मूल यह एक शरीर
का मोह ही है।