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________________ ( १०९ ) ज्ञान शतक (१) मोह निद्रा से ज्ञान-चेतना का नाश होता है । (२) भ्रमण करने से थकावट आती है और थकावट से नींद आती है उसी प्रकार चौरासी लाख जीवा योनि में भ्रमण करने मे जीव को थकावट लगी है और इसको उतारने के लिये मोह निद्रा में यह - पामर सोया है । ज्ञानी पुरुष जगाते हैं किंतु यह ' पामर नहीं जगता। (३) मोह निद्रा से विचार शून्य हृदय वन जाता है । (४) मोह पिशाच ज्ञानी के तत्वों पर विचार नहीं करने देता। (५) जीवों के गले में काल की फांसी लगी है दौरी खींचते ही प्राण पक्षी उड़ जायेंगे । (६) दूसरे के मृत्यु की चिंता होती है किंतु खुद की मृत्यु की चिंता नहीं होती। (७) गर्भ में आते ही आयु घटने लगती है किंतु आयु घटने कान गर्भ में भान था और न वर्तमान में है। (८) कुत्ता मरकर देव और देव मरकर कुत्ता, ब्राह्मण मरकर भंगी और भंगी मरकर ब्राह्मण होता है यह कर्म की विचित्रता है। (९) मैं अफेला आया हूं और अफेला जाने वाला हूँ इतना ही ज्ञान होतो काफी है।
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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