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( १०८ ) १६ जो मनुष्य लोभ को अपने आधीन करता है वही संसार में सच्चा स्वामी योगी और संसार से सर्वथा वियोगी है। ____१७ क्षमा गुण के अभाव में अन्य गुण उतने ही निरर्थक है; जितने किसी अंक के रहित बिंदियां ।
१८ जिस देश, जाति, किंवा समुदाय मे प्रेम का अभाव होता है, वह देश, जाति किंवा समुदाय अज्ञान से पूर्ण है अथात् मिथ्यात्वी है ।
१९ परदोष को प्रकट करने का स्वभाव, यह स्वदोष की वृद्धि करने वाला है, और यह दुर्गति का असाधारण कारण है, और यही मिथ्यात्वी का लक्षण है।
२० आर्य वही है जो त्याग करने योग्य कार्यों से दूर रहता है। अनार्य उससे विपरीत है
२१ किसी के शरीर का नाश करना उसी का नाम हिंसा तो है ही किन्तु द्वेष बुद्धि से किसी को मानसिक दुःख देना वह भी हिंसा है। __२२ यदि सर्प के मुख से अमृत की वृष्टि होती हो तो दोपदृष्टिवाला समदृष्टि बन सके।