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________________ ( १०७ ) ६ सर्वथा ब्रह्मचारी रहने वाले पुरुषों ने ऐसे संयोगों में कभी नहीं आना चाहिये, कि जिससे अपने ब्रह्मचर्य के भंग का प्रसंग आपडे । ७ नींव ( बुनियाद ) की दृढता पर ही जैसे सारे मकान की दृढता का आधार है वैसे ही वीर्य की रक्षा पर ही जीवन की दृढता का आधार है । ८ विशेष पुत्रोत्पत्ति करना, यह आर्थिक दृष्टि से देश की दुर्दशा करने के बराबर है । ९ जो मनुष्य अपनी स्त्री को छोड़कर अन्य स्त्री के पास जाता है वह जानबूझकर अपनी स्त्री को दुराचारिणी बनाता है और खुद दुराचारी बनता है । १० संसार में भिन्नता मले ही रहे परन्तु विरुद्धता मत करो स्पर्द्धा भले ही करो किन्तु ईर्षा मत करो । ११ रागी मनुष्य के उपदेशमें स्वार्थ का अंश अवश्य रहता है वीतराग का उपदेश एकान्त परमार्थोपदेश है । १२ एक बोल और एक तोल यह व्यापारिक उन्नति के लिये सच्चा कारण है । है १३ लोह की जंजीर शरीर के बल से तोड़ी जा सकती परन्तु मोह की जंजीर अन्य किसी शक्ति से नहीं तोडी जा सकती है सिवाय एक वैराग्य के । १४ निंदा करने से अपनी शुद्ध क्रिया भी दूसरे की अशुद्ध क्रिया के बराबर होजाती है । १५ जहां का ग्रह होता है वहां धर्म नहीं हो सकता.
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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