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१५ गुणग्राहकता वशीकरण मंत्र से विश्व वशीभूत होजाता है ।
१६ गुणग्राहकता सद्गुण का निधि और दोषदृष्टि दुराचार का भंडार है ।
१७ गुणदृष्टि सदाचार और दोषदृष्टि दुराचार है । १८ गुणी शीलवान है दोषी व्यभिचारी है । १९ गुणदृष्टि धर्म सम्मुख है और दोषदृष्टि विमुख है
अमूल्य विचार । ।
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१ पाप करके प्रायश्चित करना यह केदि में पैर डालकर के धोने के बराबर है ।
२ जितने अंश में ब्रह्मचर्य की रक्षा विशेष की जाय उतने ही अंश में महत्वयुक्त कार्य करने की शक्ति प्रबल होती है । जीवन का यही सार है
३ वीर्य रक्षा करना, यह आत्मरक्षा करने के बरावर है | आत्म रक्षा यह विश्व रक्षा
४ वीर्य रक्षा करनी, यह एक प्रजावत्सल, नीतिपरायण राजा की रक्षा करने के बराबर है, क्योंकि वीर्य यह शरीर का सच्चा राजा है ।
५ इक्षु में से रस निकल जाने पर जैसे कूचा मात्र रहते हैं, वैसे ही वीर्य के नाश में शरीर सलहीन हाड गर मात्र रहता है ।