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________________ ( १०६ ) १५ गुणग्राहकता वशीकरण मंत्र से विश्व वशीभूत होजाता है । १६ गुणग्राहकता सद्गुण का निधि और दोषदृष्टि दुराचार का भंडार है । १७ गुणदृष्टि सदाचार और दोषदृष्टि दुराचार है । १८ गुणी शीलवान है दोषी व्यभिचारी है । १९ गुणदृष्टि धर्म सम्मुख है और दोषदृष्टि विमुख है अमूल्य विचार । । ( १ पाप करके प्रायश्चित करना यह केदि में पैर डालकर के धोने के बराबर है । २ जितने अंश में ब्रह्मचर्य की रक्षा विशेष की जाय उतने ही अंश में महत्वयुक्त कार्य करने की शक्ति प्रबल होती है । जीवन का यही सार है ३ वीर्य रक्षा करना, यह आत्मरक्षा करने के बरावर है | आत्म रक्षा यह विश्व रक्षा ४ वीर्य रक्षा करनी, यह एक प्रजावत्सल, नीतिपरायण राजा की रक्षा करने के बराबर है, क्योंकि वीर्य यह शरीर का सच्चा राजा है । ५ इक्षु में से रस निकल जाने पर जैसे कूचा मात्र रहते हैं, वैसे ही वीर्य के नाश में शरीर सलहीन हाड गर मात्र रहता है ।
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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