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(१०५ ) ३ गुप्त से गुप्त विचारों को भी पवित्र रखियेगा।
४ विचारों को शब्द से दरसाओ या मनमें छिपाओ तदपि विचारों का असर तो दूसरे पर होता ही है।
५ अगर आपको सम्यक्त्व से प्रेम है तो दूसरे के दोष के स्थान पर गुण ग्रहण कीजिएगा।
६ अगर आपको मिथ्यात्व से प्रेम हो तो दूसरे के गुणों की ओर लक्ष्य न कर केवल दोष देखियेगा।
७ सम्यग्दर्शन और मिथ्यादर्शन इन दोनों में से जिनका व्यापार आपको पसंद और हितकर हो वही कीजियेगा । सुज्ञेषु किं बहुना---
भंगी विष्टा ढूंढता है और अत्तार अत्तर । वैसे ही दोषी दोष ढूंढता है और गुणी गुण ।
९ हंस मोती और कौआ सडा मांस खोजता है वैसे ही गुणी गुण और दोषी दोष ।
१० जैसे विचार वैसे आचार और जैसे आचार वैसी गति तथा मोक्ष भी मिल सक्ता है। ____ ११ गुणग्राहक द्वेपी को मित्र और दोपग्राहक मित्र को भी द्वेषी बनाता है।
१२ आर्य की गुणदृष्टि और अनार्य की दोपदृष्टि होती है।
१३ गुणदृष्टि स्वर्गीय और दोपदृष्टि नारकीय होती है
१४ गुणग्राहक विश्व का मित्र है, और दोप ग्राहक विश्व को अपना शत्र बनाता है।