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( १०४ ) ब. करते रहोगे तो तुम अपनी सफलता में विलम्ब न समझो अर्थात् जितनी चिंता तुमसे धनादि के वास्ते की जाती है उसके करोडवें भाग जितनी भी यदि आत्मा के वास्ते की जाय तो भी जीवन सफल है।
शरीर १ यह शरीर एक जीर्ण कुटी है, इसका मोह कौन रखे ?
२ दूसरों के मृत शरीर अपनी आंखों से जलते हुए देखकर अपने शरीर का मोह नहीं छुटता है ।
३ मनुष्य अगर शरीर के समान ही आत्मा की चिंता करे तो इसी भव में वह मोक्ष मार्ग के अत्यंत नजदीक पहुंच जाता है।
४ शारीरिक सुख पराधीन है परन्तु आत्मिक सुख स्वाधीन है।
५ शारीरिक सुख क्षणीक है परन्तु आत्मिक सुख शाश्वत है।
६ शरीर यह मिट्टी का एक पिंड मात्र है परन्तु आत्मा यह सूर्य के समान प्रकाशित है।
आप कैसे हैं ? १ समदृष्टि विश्वमात्र से प्रेम करता है।' २ समदृष्टि विश्व के हित में अपना हित समझता है।
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