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(.१०४ ) अ. ६ यह आत्मा अपने सिवाय और किसी को दुःखी अथवा सुखी नहीं बना सक्ती किन्तु रेल के पुल नीचे खडे हुए श्वान की तरह सर्व कुटुम्ब का भार अपने ऊपर मानकर व्यर्थ ही फूलाता है।
७ नित्य प्रति लाखों मनुष्य यमराज के घर पहुंच रहे हैं और पहुंचेगे । फिर भी इस संसार का कारोवार चल रहा है तो तू एकही व्यक्ति अपने आपके लिए क्यों इतना मिथ्या घमंड करता है ?
८ स्त्री पुत्र और धनादि से मोह कम कर अन्यथा ये स्वयं तुझसे मोह कम कर देंगे।
९ स्वेच्छा पूर्वक संसार से उदासीन बनो अन्यथा किसी न किसी दिनं तुम्हारे कुटुम्बी ही बलात्कार से तुम्हें तुम्हारे घर से उठाकर मरघर पर ले जाकर केवल हमेशा के वास्ते रख ही नहीं आयेंगे किन्तु दहन भा कर दंग । यह अनादि कालका रिवाज है। - १० धनोपार्जन के वास्ते पाप की गांठ तू बांधता है पर उस धन में से दान देता नहीं अतएव मृत्यु पश्चात् तेरे कुटुम्बी उसका उपभोग करेंगे और पाप का भागीदार तू होगा। कैसी ही विचित्र बात है कि तर मर बाद
भी तुझे पाप लगता ही रहेमा । वास्ते इस पापी पिशाची ' धन का तू इतना क्यों गर्व और मोह करता है ? .
११ स्त्री, पुत्र, धन और शरीर की जितनी चिंता तुम्हें है यदि उसका करोडयां अंश भी आत्मा के वास्ते