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(१०३ ) २६ जागृत मनुष्य घोडे को सम्हालता हुआ इष्ट स्थानपर
पहुंच जाता है पर निद्राधीन मनुष्य को घोडा गिरा देता है उसी प्रकार ज्ञानी कर्म-घोडे को वश कर लेते हैं और अज्ञानी जागृत न होने से नरक निगो
दादि गड़हे में गिर पडते हैं । २७ आत्मा निज रूप में जागृत हो तो कर्म सत्ता का
कुछ भी जोर नहीं चल सक्ता। २८ क्रोध मान माया लोभ राग द्वेष सदा से जीव के
शत्रु हैं जिन्हें मित्र मान बैठे हैं । अब भी उन्हें शत्रु __ समझकर उनका नाश कर देना चाहिये। २९ कर्म के साथ लडने में आनन्द है पर गूंगे बनकर ___ मार खाते रहना शरम की बात है। ३० ज्ञानी स्वाधीन है, अज्ञानी कर्माधीन है। ३१ अज्ञानी को कर्म तृणवत जहां तहां भटकाते हैं पर
ज्ञानी मेरू ज्यों अडोल रहते हैं और कर्म वायु स्वयं
परास्त हो नष्ट होजाते है। ३२ कर्म स्नेह की श्रृंखला ज्ञानी क्षणभर में तोड डालते हैं,पर अज्ञानी कर्म श्रृंखला को दृढ बनाते जाते हैं ।
आत्मोपदेश । १ मात पिता स्त्री और पुत्रादि तुझे श्मशान में ले जाकर जलावेगे, स्वर्ग, नक, पुण्य और पाप के फल का विश्वास हो तो आत्म आराधना कर, इस विषय में तेरी