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(१०१) ७ मोहनीय कर्म से कषायादि संयोग प्राप्त होते हैं किंतु वे कषाय करने के लिये आत्मा को प्रेरित नहीं
करते अज्ञानी स्वयं कषाय करता है। ८ नाटक, सिनेमा होटलादि रूप, रंग व रसास्वाद के साधन हैं पर वे बलात्कार से मनुष्य को नहीं बुलाते उसी प्रकार मोहनीय कर्म भी कषाय के लिये जोर जुल्म नहीं करते । इच्छानुसार कषायी व वितरागी बनने देते हैं । सरागी या वितरागी बनना यह अपने
स्वाधीन है। ९ बलवान आत्मा कर्म को नष्ट कर देती है और निर्वल
आत्मा कर्म के स्वाधीन होजाती है । १० मोहनीय कर्म सब कर्मों का मूल है। ११ कर्म के संयोगादि नष्ट करने वालों के समीप कर्म नहीं
ठहर सक्ते और जो मोहनीयादि कर्मों का सत्कार करते हैं उन पर वे सवार हुए विना भी
नहीं रहते। १२ एक समय की विजय अनंत काल की विजय है और
एक समय की हार अनंत काल की हार है। १३ कर्मों के स्वाधीन होना ही कर्म वटवृक्ष को उत्पन्न ___ करना है। १४ कर्म बालक है और आत्मा पिता है, पिताको बालक
से डरने की क्या जरूरत है ? १५ राग और द्वेष कर्म बंधन के कारण हैं।