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( ८३ ) धर्म स्थान यह शांति वैराग और वितरागता का झूला ( हिंडोला - पालना ) है ।
( ८४ ) जड के बजाय चैतन्य नेत्र से विश्व को देखो ( ८५ ) स्थल से जल मार्ग और जल मार्ग से आकाश मार्ग में विशेष धोका है इससे भी आत्मिक मार्ग के लिये विशेष सावधान रहने की आवश्यकता है ।
( ८६ ) विषय - कषाय की मात्रा का नाश हो तो अधर्म घट जाय और सर्वत्र धर्म का प्रचार होजाय ।
( ८७ ) सेवा करने वाला दूसरों की नहीं किन्तु अपनी ही सेवा कर रहा है ।
( ८८ ) सेवा यही सच्चा स्वार्थ है शेष सब व्यर्थ हैं ( ८९ ) सीधी व सुन्दर वस्तुओं को भी बांकी देखे वह वक्री । प्रायः पंचम आरके जीव |
(९०) बुद्धि की तीक्ष्णता का अभाव यही जडता । ( ९१ ) स्वयं की इच्छा से खाया जाय वही अन्न और ऐसा अन्न ही लाभदायी है उसी प्रकार स्वयं की इच्छा व समझ पूर्वक दिया जाय वह दान है । खाना परोपकार नहीं है उसी प्रकार धर्म ध्यान करना दान देना आदि भी परोपकार नहीं है किन्तु स्वोपकार ही है ।
(९२) अज्ञानी ने शरीर को अपना मान रखा है ? किन्तु आत्मा को तो यह सर्वथा भूल गया है ।
( ९३ ) मनके विचार पूर्ण किये जाते हैं पर मनुयता के गुणों का नाश करते हैं ।
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