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(७४) परमात्मपद यह मानव का जन्म सिद्ध हक है । किन्तु अनंत काल से आत्मा भूल गया है । (७५) धार्मिक जीवन तन्दुरुस्ती है तन्दुरुस्त मनुष्य स्वर्ग व मोक्ष में जाता है ।
( ७६ ) विषय कपाय मय जीवन रोगी जीवन जिससे रोगी नरक निगोद निगोद के गड़हे में गिर जाता है ।
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(७७) अंग जितना सूक्ष्म है उसकी बीमारी रोग भी उतना ही सूक्ष्म होता है ।
( ७८ ) शरीर स्थूल है इसलिये इसकी बीमारी व रोग भी स्थूल हैं ।
( ७९ ) आत्मा अरूपी है जिससे इसकी बीमारी व रोग भी सूक्ष्म है ।
( ८० ) सूक्ष्म रोग को ज्ञानी ही देख सक्ते हैं । अज्ञानी अंधा है और वह आत्मिक रोग को नहीं देख सकता वह तो शरीर का ही चिंता करता है ।
( ८१ ) उपालंभ देने व सुनने का श्रोता व वक्ता दोनों को अभ्याससा होगया है
८२ ) विज्ञान, वायरलेस, एरोप्लेन, बिजली, फोनोग्राफ, रेलवे तार, मोटर आदि का आविष्कार कर सका किन्तु चैतन्य तत्व को नहीं ढूंढ सका । चैतन्य का आविष्कार तो ज्ञानी ही कर सकता है । विज्ञानी से भी ज्ञानी के ज्ञान का चमत्कार अनंत गुना विशेष है ।
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