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( ९७ ) (६४) बुद्धिचन्द्र के प्रतिविम्ब के समान है । हृदय की श्रद्धाचन्द्र से साक्षात्कार है ।
(६५) भोजन का पाचन न होना वमन और विरेचन करने के समान है उसी प्रकार जिन वानी का पाचन न होना उसको वमन व विरेचन करने के समान है।
(६६) मानव शरीर रूप मंदिर से विशेष महत्वशाली मंदिर तीन लोक में नहीं हैं।
( ६७ ) क्षमा वस्त्र नहीं है किन्तु यह तो आभूषण है. (६८) संयमी पुरुषों के लिये रात भी दिन है।
(६९) ज्ञानी का जीवन निर्दोष बालक से भी अनंत पवित्र है पर अज्ञानी का जीवन उतना ही मलीन है।
(७० ) जैन शास्त्र इस जीवन को और अनंत जीवन को पवित्र बनाने वाला परमशक्तिशाली यंत्र है।
(७१) जैन शासन जगत को पवित्र बनाने वाला परम पवित्र पुरुषार्थि शाश्वत मंडल है।।
(७२) अधोगति के कर्तव्य से छुड़ावे वही धर्म है।
(७३) खान पान में अविधि करने वाला तन्दुरुस्ती गुमाता है । खान पान में विवेक रखने वाला तन्दु
रुस्त रहता है । उसी प्रकार ज्ञानी विवेक से अपना पवित्र • जीवन व्यतीत करते हैं और अज्ञानी पाप मय जीवन बिताते हैं जिससे उनकी आत्मिक तन्दुरुस्ती बिगड़ जाती है।