________________
(९६) (५३) मुनिराजों को बुरा न लगे इसीलिये प्रायः धर्म क्रियायें की जाती है।
(५४) व्याख्यान सभा कहीर उपालंभ सभा जैसी बन रही है।
(५५) बुद्धिवाद में सिर्फ शब्दों का आडम्बर है पर हृदय वाद में सत्य क्रिया का साक्षात्कार है।
(५६) चैतन्यवाद का ज्ञान हो जाय तो विश्व में परम शांति पैदा हो । जड़ वाद के कारण ही द्वेप, क्लेश, ईपा, व निन्दा का साम्राज्य फैला है।
( ५७ ) सुख, दुःख केवल बुद्धि की कल्पना है । (५८) ज्ञानी, विषय-कपाय-प्रवृत्ति को घटाते हैं। (५९) अज्ञानी विषय-कपाय-प्रवृत्ति को बढ़ाते हैं। (६०) असली सत्य का निवासस्थान हृदय है।
(६१) ध्यानियों की गुफा में सिंह व्याघ्र, व सपा ने डेरा डाला है। उसी प्रकार वर्तमान के कितनेक त्यागी वैरागी वर्ग में द्वेष, इपी, निंदा, व कपाय रूपी मलीन वृत्ति का वास दिख रहा है।
(६२) प्रभु महावीर को गौतम पहिचान सकते हैं गौशाला नहीं पहिचान सका इसी प्रकार ज्ञानी को ज्ञानी ही पहिचानते हैं अज्ञानी नहीं पहिचान पाते ।
(६३) बुद्धि और श्रद्धा में अनंत अंतर है फिर भी बुद्धि अपने को श्रद्धा के समान समझने का दावा . . है । बुद्धि पीतल और श्रद्धा सुवर्ण है।