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( ९४ ) ( ३६ ) जिसे ज्ञान चक्षु नहीं है वह स्वर्ग. नरक, पुन्य, पाप, बंध व मोक्ष नहीं देख सकता
( ३७ ) चर्म चक्षु वाला स्त्री, पुत्र व धन को ही मोक्ष मानता है। और उसमें ही लीन है.
( ३८ ) बुद्धि मय श्रद्धा कांच है, हृदयकी श्रद्धा हीरा है.
(३९) धन पर ममता रखना ज्ञानियों की दृष्टि से अपराध है और धन की चोरी करना सरकारी कानून से अपराध है पर वास्तव मे दोनो ही अपराधी हैं।
(४०) चोर की निंदा की जाती है पर परिग्रह धारी की निन्दा कौन करता है ? चोर जितना दयापान है उतना ही परिग्रह धारी दयापात्र है।
(४१) चोर एक की चोरी करता है पर धनवान सैकड़ो ग्राहकों से अनीति, अन्याय और असत्य के बल पर धन छीनते हैं।
(४२) धनवान चोर की निंदा करते हैं पर चोर धनवान की निंदा करते समय कहते हैं कि तुमने हम लोगों से अधिक व्याज लेकर हम को लूट लिया हमारे पास खाने तक को भी कुछ न रहा इसी से तो हम चोरी करते हैं । इसमें हमारा क्या दोष है ?
(४३) सिर्फ धन से ही वर्तमान काल में खानदानी समझी जाती है । पूर्वमें धर्म से समझी जाती थी..