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का देने वाला है । धर्म विहीन प्राणी उभयलोक में दुःखी होता है ।
नवी सुही' देवना देवलोए, नवी सुही पुढची पई राया । नची सुही सेठ सेनाओवइ, एगंत सुट्टी मुगी वीतरागी || न तो सुखी देवता स्वर्ग में हैं, नहीं सुखी है पृथ्वी पती भी । नहीं सुखी सेठ सेनापती हैं, केवल सुखी है मुनि वीतरागी ॥
उपरोक्त गाथा में अल्प से लेकर अपरिमित धनवान् को भी सुखी नहीं बतलाया है केवल निग्रंथ महात्मा को ही जो धनधान्यादि परिग्रह से विमुक्त हैं, सुखी बतलाया है | मनुष्य-संसार, पशु संसार तथा त्रस ओर स्थावर सब जीवों में धनवान् और निर्धन के भेद देखे जाते हैं ।
पृथ्वीकाय - हीरे और पत्थर में हीरे को ही यंत्र पर चढ़ाकर घिसते है, पत्थर को कोई नहीं वीसता । अपकाय - खोरे जलके कुए से पानी कम भरा जाता है और मीठे जल के कुए से ज्यादह । इस लिये मीठे कुए को घड़ों की अधिक मार सहनी पड़ती है । तेऊकाय -- घास की अभि पर कोई भोजन नही पकाता | लकड़ी और कडे की तेज आग को ही इन काम में लिया जाता है ।
वायुकाय -- पाखाने की गंदी हवा मे कोई पंस नहीं चलाते । मकान की शुद्ध वायु को ही पंसों की मार खानी पड़ती है ।