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साहब के प्रथम दर्शन किये थे । मुनिश्री का भी लालाजी साहब से मिलने का यह प्रथम ही प्रसग था । उस समय लालाजी साहब के साथ में उनके मुनिमजी तथा नौकर चाकर वगैरा थे । उसवक्त निम्न लिखित उपदेश दिया
गया था ।
लालाजी ! पूर्व जन्म की पुण्याई के प्रताप से यह दुर्लभ मनुष्य भव तथा इतनी संपत्ति आपको प्राप्त हुई है । आप सेठ कहलाते हैं और आपके पास बैठे हुए मुनिमजी तथा अन्य लोग नौकर कहलाते हैं । आपके नोकर के हाथ में सौरुपये की भी अंगूठी नहीं है और आपके हाथ में दसहजार की अंगूठी का होना मामूली बात है । आपके नोकर किराये के साधारण मकान में रहते हैं और आपके लिये हैद्राबाद, महेन्द्रगढ तथा पंचकुला में विशाल बंगले और बगीचे मौजूद हैं । आपका नौकर बोझा उठाकर भी पैदल चलता है और आप खाली हाथ होकर भी मोटर में घूमते हैं। बीमार नौकर को रेल्वे के तीसरे दर्जे में, भीड़ भड़के में, मुसाफिरी करना पड़ती है और आप दूसरे दर्जे में सफर करते हैं जहां न भीड़ है न भड़का | नौकरों की अपेक्षा आपका खानपान, मकान, वस्त्र, पात्र, आभूषण आदि सब श्रेष्ठ है । इसी तरह आरंभ तथा परिग्रह में भी आप अपने नौकरों से सैकड़ों गुणा बढकर हैं । इस पापकार्य की विशेषता से भी आप सेठ तथा यह नोकर कहलाते हैं ।