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एक डॉक्टर किसी नेत्र रोगी को कहता है कि पांच वर्ष तक अंधेरी कोठरी में रहना पडेगा और सूर्य का प्रकाश आंखों पर नहीं पड़ने देना होगा अगर ऐसा नहीं किया जाय तो आंखो को नुकसान होगा । रोगी ऐसे सलाहकार डॉक्टर का बहुत उपकार मानता है और सब सांसारिक कार्यों को तिलांजलि देकर उसकी आज्ञा पालन करता है। इसका कारण है डॉक्टर के वचन पर पूर्ण विश्वास का होना । उसका वचन सत्य, तथ्य एवं हितकारक माना जाता है । लेकिन दूसरी ओर ज्ञानी के वचन उतने ही उपेक्षा के योग्य माने जाते है। नेत्र रोगी पांच वर्ष की अवधि तक जीवित रह सकेगा या नहीं यह निश्चित नहीं होते हुए भी डॉक्टर की आज्ञा का पालन किया जाता है । लेकिन निश्चय ही सुखी बनने के उपाय बतलाने वाले प्रभुवचनों पर दुर्लक्ष किया जाता है और इसके लिये आत्मा को लेशमात्र भी चिंता नहीं होती । आत्मा की पतित दशा का यह परम प्रमाण है। डॉक्टर की आज्ञा की अपेक्षा ज्ञानी की आज्ञा का पालन अनंतगुणी सावधानी से करना चाहिये। वैसा 'रनेवाला व्यक्ति ही आस्तिक है।
लालाजी को उपदेश । व्यावर में बालिया के बंगले में लालाजी श्री ज्यालाप्रसादजी साहब ने मुनि श्री मोहनऋपिजी महाराज