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(८०) सिद्ध भी कर दी है । इसी तरह समुद्र में एक कंकर गिरने पर पैदा होने वाली लहर की चक्राकार आकृति समुद्र के अंत तक पहुंच जाती है।
भाषा पर जितना संयम रखने का प्रभू का फरमान है उतने ही रूपमें उस पर असंयम देखने में आता है। निरर्थक दूसरों की निंदा एवं लघुता की जाती है । शास्त्रकारने दूसरों की सच्ची या झूठी निंदा न करने के संबंध • पिट्ठीमंसं न खाएज्जा" यह सूत्र फरमाया है। याने परनिंदा करना मनुष्य की पीठ का मांस खाना है । अंग्रेजी भाषा में भी परनिंदा के लिये — Back bite' शब्द है। वेक याने पीठ और वाइट याने दांतों से काटना अर्थात् बेक वाइट इस संपूर्ण शब्द का अर्थ हुआ पीठ काट कर खाना । जो पिट्ठी मांस खाने का समानार्थवाची है। भगवान् महावीर के तमाम सिद्धांत विज्ञान की तराजू पर तुले हुए हैं। लेकिन अफसोस यही है कि उनके ग्राहक विरले ही हैं। इसी के न होनेसे आज समाज में द्वेष, निंदा, ईर्षा और कलह का साम्राज्य र्वत्र दिखाई दे रहा है। भाषा पर संयम रखा जाय तो सब कलहों का मटियामेट हो जाय । दोषग्राही के स्थान पर सब गुणग्राही बने । गुणग्राही सत्ययुगी है और दोषग्राही कलयुगी।
पूर्व के महापुरुषों ने सत्य भाषा को जितना महत्व दिया है आज उनकी संतानों ने उस महत्व को उतनाही