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(७८) खिंच गया; जिससे विषयांतर होगया है। किंतु यह
विषयांतर भी मीठे भोजन के साथ नमकीन चीज के __समान रुचिवद्धक मालूम होनेसे प्रक्षिप्त कर दिया गया है।
श्रोत्रंद्रिय के दुरुपयोग एवं टेलीफोनके सदुपयोगका विवेचन ऊपर होचुका है। घोर अधेरी रातमें भयानक स्थानमें बिजली की बैटरी काम में लाई जाती है। उसके प्रकाश की सहायता से सर्प, बिच्छु आदि विषारी प्राणियोंके विष से शरीरकी रक्षाकी जाती है । कभी२ वह प्राणोंकी रक्षक भी बन जाती है। बैटरी की कीमत आठ या बारह आने के करीब होती है लेकिन वह हिफाजत से वरती जाती है। लेकिन चक्षु-इंद्रिय का उतना ही निकृष्ट दुरुपयोग किया जाता है। उससे विषय-विकार वर्द्धक नाटक, सिनेमा, चित्र, स्त्री वगैरा के अंगोपांग आदि देखे जाते हैं । चित्त की वृत्तियां मलिन की जाती हैं। निरर्थक पापाश्रव उपार्जन किया जाता है। ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती के जीव की दृष्टि पूर्व भवमें ' श्री देवी' पर पड़ी जिससे उसपर राग आया और चक्रवर्ती के जीवन को उसने धन्य माना। श्री देवीको सुख का साधन मान कर विषय सुख की इच्छा की । शास्त्रीय भाषा में इसे 'नियाणा' कहते हैं। नियाणे के फल स्वरूप चक्रवर्ती के भव में इच्छित भोग प्राप्त हुए जिन्हें भोगने पर उनके प्रायश्चित-स्वरूप उसे सातवीं नरक का अधिकारी बनना पड़ा।