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है। किंतु जो तत्वों को कुछ जानता है और कुछ नहीं जानता है ऐसे 'दुविअड्डा' का सुधार करना मानों पत्थर की गाय को दुह कर दूध निकालनेके वरावर है । अथवा रेतीको पील कर उसमें से तेल की आशा रखनेके समान है। वर्तमान श्रोतृवर्ग कौनसी श्रेणीका है इसका विचार पाठक स्वयं ही करलें ।
तीनसौ साठ दिन तक दिन में तीन२ दफे व्याख्यान सुना जाता है किंतु जीवन, बुढिया द्वारा पीसी जाने वाली चकी के समान अथवा घानीके वृद्ध वैल के समान, जहां का तहां ही नजर आता है। उसमे कुछ भी प्रगति नहीं दिखाई देती है।
जिनवाणी सुनकर उसका दुरुपयोग करने वाला जितना अपराधी है वैसे अयोग्य को जिन वाणी सुनाने वाले को भी ज्ञान का अतिचार लगता है। एक जोहरीपिता अपने प्रिय बालक को खेलने के लिये हीरा देता है उस अबोध बालक से वह हीरा गुम जाता है । इस घटना में हीरा खो देने वाला अवोध बालक अपराधका पात्र है या मोहवश अनधिकारी वालक को हीरा सौंपदेने वाला पिता ?' ठीक प्रायः यही दशा वर्तमान में श्रोता एवं वक्ता की अनुभव में आ रही है। ___आश्रव और संवर का विषय चल रहा था। बीचमें अनिच्छा से समाज की वर्तमान परिस्थिति का रेखा चित्र