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(६५) अधम जीवा योनियों में उत्पन्न होते हैं. अनंत पुण्यवान् देव को ही यह मानव शरीर मिलता है.
धर्म रहित मनुष्य का शरीर पशु के शरीर से भी अनंतगुना पतित है। पशु का शरीर जीवित अवस्था में भी काम आता है और मृत्यु के उपरान्त भी उसकी हाडियां, चमड़ा तथा सींग आदि पदार्थ काम में आते हैं। किन्तु धर्मरहित मनुष्य के शरीर का कोई भी अंग या उपांग जीवित अवस्था में या मृत्यु के उपरान्त भी उपयोग में नहीं आता है। मृत सपै या धान के कलेवर से भी मृत मनुप्य का कलेवर अधिक दुगंध युक्त होता है । मनुष्य देह से धार्मिक जीवन व्यतीत किया जाय तभी उसका साफल्य है अन्यथा उसका प्रत्येक क्षण भयंकर है। मनुष्य के भी पांच इंद्रियां हैं और पशु के भी पांच । आहार-निद्रा--भय-मैथुनादि सर क्रियाएं मनुप्य और पशुओंमें समान हैं। दोनों में अंतर है तो केवल आत्मिक बानका है। शारीरिक-ज्ञान पशु-पक्षियों में भी है। वे चाहे संजी हों या असंती या विकलेंद्रिय लेकिन सरको शरीर से प्रेम अवश्य है। और वे शारीरिक मुस के लिये दिनरात प्रयत्न किया करते हैं।
चींटी सरीखा टोटा प्राणी भी अपना विल इतना डोटा और गहरा नाती है कि मनुप्य तक उसे कट नहीं पहुंचा सकता । मक्सी जमीनपर बहुत कम चलती फिरती है। वह ज्यादतर हवा में उटनी फिरती है। मार