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(६४) दाम दिये होंगे इसका थोडा विचार कीजियेगा. ऐसे हीरा, मोती और माणिक से भी अनंत मूल्यवान शरीर रूपी मकान में निवास करके कौनसे कार्य करना चाहिये इसका विचार कीजियेगा. सामान्य मिट्टी के नये मकान, धर्मस्थानक पोषधशालादि में आप जाते हैं. वहां पर आप प्रभु स्तुति और आत्मशुद्धि करते हैं । उस मकान की अपेक्षा यह शरीर रूपी मकान अनंत पवित्र और मूल्यवान है पवित्र शरीर में निवास करके पवित्र कार्य करना चाहिये. अच्छे मकान में अच्छे कार्य होने चाहिये । पाखाने में सब टट्टी जाते हैं, हवा बंगले में कोई टट्टी नहीं जाता. वैसेही पवित्र एवं मूल्यवान शरीर से अमूल्य एवं पवित्र कार्य करने चाहिये. अगर ऐसा नहीं किया तो मानव भव का मिलना और न मिलना दोनों बराबर है, ऐसे अपूर्व शरीर से अपूर्व कार्य ही करने चाहिये. अन्यथा अपूर्व शरीर की कुछ भी सार्थकता नहीं है.
चौरासी लक्ष जीव योनी में मनुष्य शरीर उत्तम है. स्वर्ग के देव और इंद्रादि के शरीर से भी यह शरि अनंत गुना उत्तम है. असंख्य देव अपना स्वर्गीय सुख स्वगीय देवांगनाएं और रन महलादि का त्याग करके इस मानव भवन में निवास करना चाहते है. परन्तु उनको यह
गरीर-रूपी मकान मिलना बहुत दुर्लभ है, और कितनेक - स्वर्ग से चवकर पृथ्वी, पानी, वनस्पति आदि