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(६०) में कोई भी नहीं ठहर सकता है उसको तो जलाना ही पड़ता है. मिट्टी के लावारिस मकान को लोग लाखों रुपये देकर खरीदते हैं परन्तु निर्जीव शरीर रूपी मकान से तो सब घृणा करते हैं. पिता पुत्र के पुत्र पिता के, माता पुत्री के, पुत्री माता के पति पत्नी के, पत्नी पति के, चेतन्य रहित शरीर को शीघ्राति शीघ्र जला कर भस्म करते हैं वर्षा के कारण शरीर न जले तो उसमें तैल आदि डालकर जलाते हैं और उस शरीर की संपूर्ण राख कर डालते हैं तथा बची हुई पत्थर वत् हड्डीयों को ढूंढ कर जलाते हैं । फिरभी यदि पत्थर वत् हड्डीयों के टुकडे बाकी रह जाते हैं तो उनको ढूंढ २ कर एकत्र करके उनका नाश करने के लिये जल में डाल देते हैं. शरीर रूपी मकान के स्वामी के चले जाने पर उसके चैतन्य रहित शरीर रूपी घर की उसके स्नेही इतनी दुर्दशा करते हैं लेकिन इसी शरीर के वल पर मनुष्य मोह रख कर अनंत जन्म तक चले उतने पापकी सामग्री एकत्रित करता है एक जीवन के लिये, एक शरीर की मिथ्या शांति के लिये, अनंत भव और अनंत शरीर धारण करके अनानी अनंत कष्ट उठा रहा है उसको अनेक प्रकार का बोध देने पर भी वह शरीर का मोह नहीं छोडता है।
मनुष्य शरीर में तीन मंजिल है. प्रथम मंजिल कमर . दक की दमरी मंजिल गग्दन तक की और तीसरी