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( ६१) मंजिल गरदन के ऊपर के हिस्से की जिसको हवा बंगला कहना चाहिये. क्योंकि उसमें सारे शरीर की सजावट की गई है. ऊपर की सजावट से ही शरीर सुंदर दीख पडता है. अगर ऊपर की सजावट में थोडी सी भी कसर होतो सारा शरीर घृणा का पात्र बन जाता है. जैसे नाक का थोडा ही हिस्सा अगर कटा हो या आंख मे थोडा ही मोतिया विन्दु पड गया हो तो वह सारा शरीर रूपी मकान भद्दा मालूम होने लगता है.
और उसका सुधार भी नहीं हो सकता है. मिट्टी का मकान चाहे जितना खराब हो जाय तदापि उसकी मरम्मत करने से वह पहिले से भी विशेप सुन्दर दिखाई पड़ने लगता है परंतु चैतन्य रहित मनुष्य शरीर की तो मरम्मत ही नहीं हो सक्ती है. ऐसा यह निर्माल्य एवं कमजोर है.
प्रथम मजिल म पाखाना आर पशान घर ह. दसर मजिल में रसोई घर (पेट) है. वहां पर रसोई बनती है. और वहां की बनी हुई रसोई सबके काम आती अगर एक दिन रसोई न बने तो घर के तमाम आदमी ( अंगोपांग ) भृस से चिल्लाने लगते हैं. हाथ, पांव, कमर आदि तमाम थक जाते हैं आंस. न. और जिव्हा की भी शक्ति कमजोर हो जाती है. भोजन पहुंचने से ही सरको शक्ति मिलती है.
तीसरी मंजिल का नाम ह्या बंगला है उनमें विविध प्रकार के फग्नीचरादि से सजावट की गद है