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( ५८ ) पधारे है विशेष प्रारंभ से बने हुए ये वस्त्र व आभूपण हैं और उनको बनाने के लिये विशेष परिग्रह का खन हुआ है आज आप आरंभ व परिग्रह से तर होकर यहां पधारे हो.
चौरामी लास जीवागोनिमें मनुष्य जाति के साथ और जिनके साथ दिल दुखाने का प्रसंग आया हो तथा मन, वचन और काया से किसी का दिल दुख पाया हो, उसके पाससे क्षमा याचने की है. अन्न जीवों में मनुष्य के साथ कपाय विशेष समय तक रहती
और एगी दशा में विशेष रूप से निकाचित कर्म का बंध होता है इसलिये भव्य आत्माओं को कगाय में गदा दूर रहना चाहिये. मोक्ष मार्ग के लिये कपायादिक का गरने का नाम संबर है और पुराने का श्रा करने के लिये प्राणधित विनग वान यानादि ना करना चादिय नप में मानी निगरा होती है. और अंत में माना जा रहन होकर मुक्ति की अधिकारी होती है.
'१-".-३२. मंचमी पी.(लिखित व्यायान गम)
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