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________________ (५६ ) जमाना है जैसे लोग जाली रुपये व नोट चलाकर धनवान होना चाहते हैं किन्तु पकड़े जाने पर उनके हाथ पांव काट लिये जाते हैं. वैसेही नकली क्षमा का ढोंग करके अपने को श्रावक व साधु कहलाने वाले को अपनी जोखमदारी का विचार करना चाहिये. प्रभुने मुनि की कपाय को जल की लकीर वत् फरमाया है. मुनि को क्रोध, मान नहीं करना चाहिये, कभी आजाय तो क्षमा मागने के पहिले मुंह का धुंक गले में भी नहीं उतारना प्रभू की आज्ञा कितनी सख्त व कठिन है किन्तु उस आज्ञा का पालन करे कौन ? जिसको सर्प और बिच्छु का ज्ञान है वह तो सर्प और विच्छ का त्याग करेगा. वैसे ही जिसको कषाय बुरी है, अनंत संसार बढ़ाने वाली है. इस प्रकार का सम्यक ज्ञान है. वह कषाय का त्याग करेगा. स्कंधकजी ने ४९९ शिष्यों को घाणी में पीलने पर भी क्षमा की और सिर्फ एक मुनि को बचाने के लिये पीलने वाले को समझाया वह न समझा जिससे उनको कपाय आई उतनी अल्प कषाय से महा पुरुषको संसार समुद्र में भटकना पडा. थोड़ा मान का अंश कायम रह जाने से बाहुबलजी का केवल ज्ञान रुका. थोड़े कपट का सेवन करने से मल्लीप्रभु के जीव को स्त्री वेद में आना पड़ा इतने बड़े महा पुरुषों को इतनी छोटी कपाय के लिये इनना कष्ट उठाना पड़ा तो जो यावज्जीवन विषय
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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