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(५३) के कांटे चलने से सामायिक की पूर्णता मानी जाती है. फोटोग्राफी कांच समान मुनि दर्शन किये जाते है. किन्तु मुनि दर्शन से अपने जीवन की पवित्रता का विचार कम किया जाता है. जहां पर सांप्रदायिकता नहीं है वहां पर ही धर्म के तत्व रहे हुए हैं.
संवत्सरी का यह पवित्र दिन है. इसको अपन भाव दिवाली के नाम से पहिचानेंगे द्रव्य दिवाली में शरीर की शुद्धि की जाती है परन्तु इस भाव दिवाली में आत्मा की शुद्धि करने की है. संवत्सरी पर्व यह एक धार्मिक पर्व है किन्तु इस दिन ने अब त्याहारका स्वरुप धारण कर लिया है. इन आठ दिनों में अन्य दिनों की अपेक्षा विशेष प्रकार के भोगोपभोग भोगे जाते हैं दिवाली के दिनों में जैसे घरकी सजावट की जाती है वैसे ही इन दिनों में घर की नहीं किन्तु जो आत्मा का घर है उसकी सजावट की जाती है अन्य दिनमें मुश्किल से एक भी इंद्रिय का भोग भोगा जाता होगा परन्तु इन दिनों में पांचो इंद्रियों के भोग भोगे जाते है (१) उधर मंदिरादि मे गायन व बाजे बजते हैं इधर धर्म स्थान में विविध राग रागनियों से श्रोतागणों की श्रवणेंद्रियों को भोजन मिलता है (२) उधर मंदिर में मूर्ति को आंगी व आभूपणा से सजाते है और बिजली की पत्तियों स भी सजावट करते हैं. इधर साधू मार्गी समाज विविध प्रकार के आभूपण व वस्त्र से स्वतः को व पुत्र को व स्त्री को