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(५०) कारण से धर्म आराधना कर सकते हो। अगर इस मनुष्य जन्म में आप से धर्म आराधना न हो सकी तो फिर आपके लिये पंचम आरा(युग) और छठा आरा(युग) दोनों बराबर हैं. पंचम कालका सुभीता, सुख, संपत्ति, वैभव, दूध, दही घी, मेवा, मिठाई आदि विलासी जीवों के लिये नहीं है, किन्तु यह तो धर्मी जीवों के लिये हैं जिनकी पुण्य प्रकृति से सब को लाभ मिल रहा है। जिस वक्त पुण्यशाली धर्मी जीवों का अभाव हो जावेगा उस वक्त अग्नि वर्षा होगी. और वह छठा आरा कहलावेगा।
सत्य शील की महिमा--सत्य और शील आदि के प्रताप से ये वाग-बगीचे हाट-हवेलियां आदि दिखाई दे रही हैं. और उनकी रक्षा के लिये पूर्व के महा पुरुषों ने महान् कष्ट उठाये हैं. शील की रक्षा व महत्व के लिये श्री पुरुषोत्तम रामचंद्रजी ने रावण के साथ घोर युद्ध किया था और विश्व मे शील की महिमा की ध्वजा फहराई थी अगर श्रीरामचंद्रजी रावण को शिक्षा न देते तो शील की महिमा आज विश्व भरम गाई न जाती और आज लाखों व्यभिचारी सतियों के सतित्व. को लूटते. सत्य की महिमा के लिये अरणक श्रावकजी ने अपनी और अपने सैकड़ों साथियों की जान देना स्वीकार किया था जिससे ही आज सत्य की महिमा हो रही है, न्याय के लिये
चड़ा महाराज ने १,८०,००,००० मनुष्य का बलिदान -- टेकर न्याय की रक्षा की थी. अहिंसा के लिये श्री मेघ